रविदास जी के गुरु
🔹संत रविदास जी के गुरु कबीर परमेश्वर जी थे⤵️
तब रैदास कही निज बाता ।
गुरु समान कबीर बड़ भ्राता ।।
सो तुम गाओ सो मैं गाऊं, तुमरा ज्ञान विचारूं ।
कहे रैदास कबीर गुरु मेरा, भ्रम कर्म धोई डरूं ।।
अनभै कथी रैदासा कूं, मिल गये पीर कबीर ।
मगहर बीच झगड़ा मंड्या, पाया नहीं शरीर ।।
रैदास खवास कबीर का, युगा-२ सत्संग ।
मीरा का मुजरा हुआ, चढ़त नवेला रंग ।।
- संत गरीबदास जी
संत रविदास जी द्वारा पूर्ण ब्रह्म कबीर साहेब की महिमा
धनि कबीर धनि वो सत् गुरू, जिन परम तत् लखाया ।
कहै रविदास सुनो हो स्वामी, मै शरण तुम्हारी आया ।। साहेब कबीर समर्थ है, आदि अन्त सर्व काल ।
ज्ञान गम्या से देदिया, कहै रैदास दयाल ।।
अनुभव किया रैदास ने, मिल गया सत्य कबीर ।
मगहर बिच झगड़ा मिटया, पाया नहीं शरीर ।।
- संत रविदास जी
परमेश्वर कबीर जी ने काशी के प्रसिद्ध स्वामी रामानन्द जी को यथार्थ भक्ति मार्ग समझाया था। अपना सतलोक स्थान दिखाकर वापिस पृथ्वीलोक में छोड़ा था। अर्थात कबीर साहेब जी ने स्वामी रामानंद जी को सतज्ञान समझाया और उन्हें सतलोक ले कर गए। उससे पहले स्वामी रामानन्द जी केवल ब्राह्मण जाति के व्यक्तियों को ही शिष्य बनाते थे। सतज्ञान से अवगत होने के पश्चात् स्वामी रामानंद जी ने अन्य जाति वालों को भी शिष्य बनाना प्रारम्भ किया था। संत रविदास जी ने स्वामी रामानन्द जी से दीक्षा ले रखी थी। परमेश्वर कबीर जी ने स्वामी रामानन्द जी को प्रथम मंत्र (केवल पाँच नाम वाला) बताया था, उसी को दीक्षा में स्वामी जी देते थे।
संत रविदास जी उसी प्रथम मंत्र का जाप किया करते थे। संत पीपा जी, धन्ना भक्त, स्वामी रामानंद जी और संत रविदास जी के गुरु संत शिरोमणि कबीर साहेब जी (परम अक्षर पुरूष, उत्तम पुरूष, सर्वश्रेष्ठ परमात्मा) ही थे। लेकिन कलयुग में गुरू परम्परा का महत्व बनाए रखने के लिए उन्होंने रामानंद जी को उनका गुरू बनने का अभिनय करने के लिए कहा और पीपा, धन्ना और रविदास जी को रामानंद जी को गुरू बनाने के लिए कहा और मीराबाई को रविदास जी को गुरु बनाने को कहा। लेकिन वास्तव में सबके ऊपर कबीर साहेब जी की ही कृपा दृष्टि थी। संत रविदास जी की वाणी बताती है कि:-
रामानंद मोहि गुरु मिल्यौ, पाया ब्रह्म विसास ।
रामनाम अमी रस पियौ, रविदास हि भयौ षलास ॥
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